है वह भ्रष्टाचार
जिसने त्याग तपस्या छोड़ी, छोड़े सुखद विचार। मानव-जीवन दूषित होता, है वह भ्रष्टाचार।। किया कलंकित कर्म निराला,रिश्वत खा जीवन में।उसका मन कलुषित कहलाता,दोष बढ़े तन-मन में।है ये मानव की अभिलाषा,मिले जगत में प्यार।। मानव… बिना कपट के, बिना द्वेष के,जो नर जीवन जीता।यश उसका अमृत बन जाता,नित्य उसे वह पीता।अच्छे कर्म दिलाता गौरव,मिले उसे सत्कार।। […]