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जिसने त्याग तपस्या छोड़ी,

छोड़े सुखद विचार।

मानव-जीवन दूषित होता,

है वह भ्रष्टाचार।।

किया कलंकित कर्म निराला,
रिश्वत खा जीवन में।
उसका मन कलुषित कहलाता,
दोष बढ़े तन-मन में।
है ये मानव की अभिलाषा,
मिले जगत में प्यार।। मानव…

बिना कपट के, बिना द्वेष के,
जो नर जीवन जीता।
यश उसका अमृत बन जाता,
नित्य उसे वह पीता।
अच्छे कर्म दिलाता गौरव,
मिले उसे सत्कार।। मानव…

मधुरिम भाषा जग में देती,
यश-वैभव नित घर में।
निश्छल काम, नाम दिलवाता,
पग पग दुनियाभर में।
पुण्य सकल मिल जाता नर को,
होता भव से पार।। मानव…

छोड़ो कर्म बुराई वाले,
पुण्य धरा पर पाओ।
जीवन है ‘अनमोल’ जगत में,
इसको सुखद बनाओ।
यही बात सबने है मानी,
ऋषियों के उद्गार।। मानव…

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