बोलो हिंदी माँ की जय
जन-जन की मुखरित ये भाषा,
माता रूप अभय।
इसको शत-शत नमन करूँ मैं,
होकर के निर्भय।।
बोलो हिंदी माँ की जय।।
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रामचरित मानस में लिक्खे,
तुलसी ने जो दोहे,
पिता-पुत्र आदर्श बताकर,
बीज प्यार के बोए।
पवनचरित से भवबाधा का,
हुआ दूर सब भय।।
बोलो हिंदी माँ की जय।।
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राजनीति के हेर-फेर में,
व्यर्थ में हिंदी पिसती,
जनता सारी शोसित होकर,
निशदिन चप्पल घिसती।
कपट-कपाट नहीं खोले तो,
सर्वनाश है तय।।
बोलो हिंदी माँ की जय।।
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उत्तर से दक्षिण भारत को,
प्रेम-पाश में बाँधे,
हर नर यहाँ पौरुष वाला है,
बिन धके हैं काँधे।
भेद-भाव मन से बिसराओ,
हो जाओ एक लय।।
बोलो हिंदी माँ की जय।।
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भारत देश अखंड हमारा,
जन संपर्क बढ़ाएँ,
सकल देश में हिंदी भाषा,
तन-मन से अपनाएँ।
प्रबल एकता कभी न होगी,
इस भारत की क्षय।।
बोलो हिंदी माँ की जय।।
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कोटि भुजाएँ खड़ी हुईं तब,
जब भी विपदा आई,
कविता मुखरित हुई तभी,
हिंदी ने क्रांति जगाई।
हिंदी है भारत की भाषा,
रखो न मन संशय।।
बोलो हिंदी माँ की जय।।
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सूर, जायसी, सेनापति ने,
भाव भक्ति के साधे,
हर कोई भारत माता को,
हिंदी में आराधे।
बुंदेले हर बोलों के मुँह,
हमको मिली विजय।।
बोलो हिंदी माँ की जय।।
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हिंदी की शक्ति के आगे,
मिट गई तानाशाही,
इस भाषा-भावों के कारण,
भागी भाग्य तबाही।
अंग्रेजों को दूर भगाया,
थे वे सब निर्दय।।
बोलो हिंदी माँ की जय।।
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हिंदी का नित अलख जगाकर,
गीत खुशी के गाएँ,
आतंकों की हर हरकत को,
जड़ से सभी मिटाएँ।
पाक, चीन सब पग चूमेंगे,
इसमें क्या विस्मय।।
बोलो हिंदी माँ की जय।।
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कवियों ने भी गौरव गाथा,
हिंदी में ही गाई,
प्रेरित होकर जगी इसी से,
भारत की तरुणाई।
भारत ही ‘अनमोल’ रहा है,
पाकर महा विजय।।
बोलो हिंदी माँ की जय।।