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श्रमिक-साधना
तेरी जय हो श्रमिक-साधना,
सदा हृदय से गाऊँ मैं।
अग्रदूत तू है ईश्वर का,
तेरे गुण बतलाऊँ मैं।।

राष्ट्रभक्ति के गुण को पाकर,
किया नित्य अभिनव उपकार।
नव निर्माण सृजनकर जग में,
तूने चाँद लगाए चार।
कष्ट भुलाए कर्म क्षेत्र के,
ये कैसे बिसराऊँ मैं।। तेरी…

सेवा कर्म सदा अपना के,
जन-सेवक कहलाते हो।
सच्चे सेवक बने देश के,
जग में कीर्ति बढ़ाते हो।
राष्ट्र-सृजन के तुम हो कारक ,
तुमको शीश झुकाऊँ मैं।।। तेरी…

प्रभु से माँगू हाथ जोड़ कर,
सेवाभाव रहे मुझ में।
तुम्हें बिठाकर अपने सम्मुख,
प्रभु को ही देखूँ तुझ में।
पाकर के ‘अनमोल’ प्रेरणा,
जनसेवक कहलाऊँ मैं।। तेरी…

1 Comment

  1. अरुण मिश्र
    7 दिसम्बर 2024 @ 7:04 अपराह्न

    श्रमिकों के ऊपर बहुत सुंदर कविता में संसार को श्रमिकों की देन के बारे में बताया गया है।
    अरुण मिश्र

    Reply

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