जहाँ भी देखो, जिधर भी देखो,
लंबे-चौड़े नेता छा गए।
जनता को धोखा देने को,
यारो फिर से चुनाव आ गए।।
कपड़े पहने नए-नए फिर,
नेता सबसे मिलने आए।
चमचे जयकारे भी बोलें,
भव्य मंच पर सभा सजाए।
झूठ-साँच के भाषण द्वारा,
नेता सबके भाग्य जगा गए।। जनता…
हलचल बड़े घरों में देखी,
चमक स्वार्थ की छाई है।
मादकता के घुँघरू बाँधे,
बजती धुन शहनाई है।
दीन दुखी को बँटने वाले,
सारे धन को नेता खा गए।। जनता…
आपस में गंठबंधन कर डाला,
नेता पेरों पड़े हुए।
मेरे ज्यादा मंत्री होेंगे,
इसी बात पर अड़े हुए।
संविधान रोते कहता है,
सारी खुशियाँ यही पा गए।। जनता…
फिर से नए विषय को लेकर,
नेता जी ने भाषण बोला।
उनकी बातों में मत आना,
चुपके से अपना मुँह खोला।
रोटी-पानी अब हम देंगे,
सुनकर वोटर भी पछता गए।। जनता…
हम हैं तो चिंता क्यों करते?
सारी खुशियाँ हम सौंपेंगे।
लेकिन जनता ये क्या जाने,
ये सबको खंजर घौंपेंगे।
रोते-रोते चूल्हा कहता,
सबका राशन यही खा गए।। जनता…
गणित लगाते जाति-पाँति का,
मीठी वाणी में वे बोलें।
वोट हमीं को देना सारे,
मन के अंदर विष को घोलें।
कहे द्रोपदी रोकर सबसे,
चीर खेंचने फिर से आ गए।। जनता…
जातिवाद पर कोई लड़ेगा,
कोई लड़े आरक्षण के नाम।
नहीं कोई भी लेना-देना,
बस इनको नोटों से काम।
जहाँ भी हलुआ मिले बहुत-सा,
दल में जाकर वहीं समा गए।। जनता…