टूट रहे संबंध
भूल रहे हम अपनेपन का,
घर वाला अनुबंध,
स्वारथ में हम भरे हुए हैं,
टूट रहे सम्बंध।।
आपाधापी के कारण ही,
छूट रहे सब काम।
धन के मद में लगा हुआ है,
मन में पूर्ण विराम।
प्रेम भाव में सबके देखा,
आपस में प्रतिबंध।। भूल…
जीवन की बगिया में हम ही,
लिखते नित्य कहानी।
लेकिन हमने बिसराई हैं,
माता, दादी, नानी।
दुनिया को दिखलाने को ही,
लिखते व्यर्थ निबंध।। भूल…
घर में कटुता भरी हुई है,
मात-पिता को भूले,
फूल सभी खुशियों के सूखे,
टूट रहे हैं कूल्हे।
प्यार भरी बातों की अब तो,
मिलती नहीं सुगन्ध।। भूल…
शहरी जीवन के दूषण ने,
छीना सब आराम।
निज जीवन के प्यार-पाश में,
दूर हुआ प्रभु नाम।
कैसे हम अब इसको मानें,
जीवन सुखद प्रबंध।। भूल…
18 दिसम्बर 2024 @ 9:24 अपराह्न
अद्भुत , इस गीत के माध्यम से समाज में सुंदर विचार को प्रस्तुत किया ,,
भुवनेश शर्मा