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क्यों रोटी से प्यार है?

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।
रोटी में ही जीवन खोया, इसमें कष्ट अपार है।।

( 1 ) रोटी का परिचय

मैं रोटी हूँ, मैंने जग में, अगणित रूप दिखाए,

मैंने ही संसारी जन को, दुर्गम पथ बतलाए।

मेरी गाथा अजर-अमर है, मेरे ही गुण गाते,

मुझको पाकर अखिल धरा के, प्राणी सब हर्षाते।

मैंने ही नित घर में घुसकर, मन में भेद कराया,

मैंने ‘जीवन नश्वरता’ का, नर को पाठ पढ़ाया।

लेकिन मानव मेरे ऊपर, दिखलाता अधिकार है।।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 2 ) रोटी की शक्ति

मेरी महिमा ऋषि-मुनियों ने, मुखरित होकर गाई,

मेरे कारण ही सुधियों ने, शक्ति हृदय में पाई।

मेरी भक्ति के द्वारा ही, कृषक सदा हर्षाते,

मेरे गुण के द्वारा जग में, सत्य-बोध् को पाते।

राष्ट्र-सिपाही मेरे तप को, अपने अंदर धरते,

निज कर्तव्य समझकर अपना, सेवा-भक्ति करते।

जो मेरी महिमा को जाने, पाता वह सत्कार है।।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 3 ) रोटी के प्रति समर्पण

जो संयम औ तप के द्वारा, रोटी को नित खाते,

वे जन वीर-तपस्वी जग में, उच्च पुरुष कहलाते।

रोटी उनको अतिशय शक्ति, तन-मन में भर देती,

उनके पाप-ताप को हरकर, अपने अंदर लेती।

रोटी को खाता व्यापारी, अपना कार्य बढ़ाता,

रोटी के कारण ही हलधर, अन्न भूमि-उपजाता।

जो रोटी का मान न समझे, वह पाता दुत्कार है।।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 4 ) रोटी का प्रभाव

मानव को अपने निज गुण से, रोटी सदा लुभाती।

बड़े-बड़े ज्ञानी-ध्यानी का, रोटी ध्यान डिगाती।।

उठकर इसी धरा से रोटी, गगन-दीप बन जाती।

मिलकर अन्न-नीर से भू पर, रोटी सृष्टि रचाती।।

अंत समय रोटी की ताकत, कभी काम न आई।

व्यथा-कथा अनुपम रोटी की, केवल है दुखदाई।।

जिसको नर ने अपना माना, मिथ्या ये संसार है।।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 5 ) रोटी की शक्ति

रोटी में धन, धन में रोटी, रोटी बोल रही है।

रोटी ही प्राणी की बातें, मिटकर खोल रही है।।

जो मिटकर खुद जग को मेंटे, वह रोटी होती है।

फिर जाने क्यों ये नर-काया, रोटी को रोती है।।

इस रोटी की सदा दीखती, जग में सुंदर माया।

इसीलिए इसने इस जग में, अद्भुत जाल बिछाया।।

ये सच है रोटी पर नर का, कभी नहीं अधिकार है।।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 6 ) रोटी के रूप

यद्यपि गुण हैं इस रोटी में, जीवन सुखद बनाती।

रोटी में जिह्वा की यारी, सुरभित सुमन खिलाती।।

स्वाद-स्वाद में ये रोटी ही, अद्भुत छटा लुटाती।

इस रोटी के खाने से ही, दुनिया नाच दिखाती।।

भूखा नर रोटी को पाकर, निज कर्तव्य निभाता।

धन-दौलत की विपुल संपदा, रोटी से दिखलाता।

इस रोटी में सकल जगत की, घुसी हुई रसधार है।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 7 ) रोटी के गुण

द्वेष, कपट औ प्रीति निभाना, सब रोटी की माया।

इस रोटी में ज्ञान-ध्यान का, हर साहित्य समाया।।

रोटी ने ही ज्ञान सिखाया, बनते मूरख-ज्ञानी।

इसके कारण ही बनती है, सुखमय जगत-कहानी।।

दुष्ट और शठ नरपुंगव वाली, दृष्टि इसी में सोई।

इस रोटी ने विश्व प्रेम की, बेल मधुरतम बोई।।

सकल धरा पर सुखमय रोटी, मानव को उपहार है।।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 8 ) रोटी के प्रभाव

रोटी ही रोटी से मिलकर, अनुपम नृत्य दिखाती।

श्रम से खाने वाले के घर, ये खुशियों को लाती।।

पाषाणों को तोड़ त्वरित ही, ये झरने लहराती।

मानव के जीवन में आकर, गीत प्यार के गाती।।

ये रोटी कवि, कलमकार की, कृति सुंदर कहलाती।

ये रोटी ही कलाकर के, उर में प्यार जगाती।।

मलयाचल की बहती सुरभित, घर में सदा बयार है।।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 9 ) रोटी के रंग

रोटी के हैं रंग विपुलतम, रोटी रंग बदलती।

सूखी रोटी बिना स्वाद के, जल के साथ निगलती।।

अनुसंधान नित्य रोटी पर, कहते अपनी गाथा।

उत्पादन के तोड़ आँकड़े, गर्वित करते माथा।।

इस रोटी ने उदरपूर्ति के, साधन सभी जुटाए।

इस रोटी के कृषक राष्ट्र का, कुल गौरव पद पाए।।

इस वसुधा पर भूख बुझाती, रोटी की जयकार है।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 10 ) रोटी के विद्रूप

रोटी के द्वारा ही जग में, जीव विपुल पलते हैं।

सबके घर में खुशियों वाले, मधुर दीप जलते हैं।।

भरे पेट रोटी के कारण, मानव बनते दानी।

करें दिखावा कुछ ढोंगी नर, नित्य करें मनमानी।।

बिना कमाए रोटी खाकर, कुछ मन में इतराते।

रोटी है जीवन की साथी, ग्रंथ यही समझाते।।

ऐसे नर को ये रोटी ही, बिना नाव पतवार है।।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 11 ) रोटी का अस्तित्व

ये रोटी ही गर्वित होकर, निज गुण पर इतराती।

सबको जीवन देने वाले, गौरव को दिखलाती।।

केवल रोटी में है जीवन, ये कहकर बहलाती।

मानव-तन है नश्वर काया, सत्य यही समझाती।।

लेकिन मानव रोटी को ही, अमर जान कर खाता।

रोटी है जीवन की दाता, सबको ही बतलाता।।

झूट-कपट की ये रोटी ही, सदा नरक का द्वार है।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 12 ) रोटी की नश्वरता

सकल धरा, बिन जाने ही क्यों, रोटी चूम रही है।।

इसीलिए उनकी किस्मत भी, भ्रम में घूम रही है।

गया बीत यौवन मतवाला, पतझड़ साज सजाया।

देख बुढ़ापा अपने तन पर, मानव तब घबराया।।

इस वय में रोटी ही अपने, नव गुण को दिखलाती।

ये काया नश्वर है सबकी, मानव को बतलाती।।

दीन-हीन के मन-आँगन में, रोटी बनी बहार है।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 13 ) रोटी ही प्राणमय

रोटी की गाथा है अनुपम, कहते सारे ज्ञानी।

रोटी के बिन रहें न जीवित, संत, सुसज्जन, ध्यानी।।

रोटी से ही सारे प्राणी, तन-मन तृषा बुझाते।

मोर, पपीहा, कोयल, दादुर, मधुरिम तान सुनाते।।

रोटी से गुण पाकर तन में, उर में ज्योति जलाते।

रोटी के कण-कण में अपने, तपबल को उपजाते।।

रोटी जीवन देने वाली, रोटी में सुख-सार है।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 14 ) रोटी का प्रभाव

जीवन है सुख-दुख का संगम, रोटी रहस्य बताती।

मानव के उज्ज्वल कर्मों को, सबके सम्मुख लाती।।

रोटी खाकर किसकी काया, अजर-अमर है होगी।

कौन स्वस्थ जीवन जीता है, और कौन है रोगी।।

जीवन में जो छुपे ज्ञान की, खुलकर गाथा खोले।

रोटी के उत्थान-पतन की, सकल कहानी बोले।।

इस धरती में सबसे ज्यादा, ये अक्षय भंडार है।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 15 ) रोटी और भूगोल

सत्य यही है, इस धरती पर, पहले केवल जल था।

रोटी बिन इस सकल धरा पर, कहीं न कोई थल था।।

जीवन के इस परिवर्तन में, गिरि ने शीश उठाया।

आज वही गिरिराज हिमालय, भारत का कहलाया।।

चरणोदक गिरि की लेने को, तुंग लहर हैं आतीं।

भारत के उस शीश-मुकुट  को, पाकर अति  मदमाती।।

रोटी की ये भक्ति भावना, करती मंगलचार है।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 16 ) वेदों में रोटी

सारे ऋषि-मुनि और संत जन, सत्पथ को बतलाते।

रोग सभी उपजे नर-तन में, रोटी से सुलझाते।।

ये रोटी ही व्यसन-पाप को, निशदिन दूर हटातीं।

रोटी ही रोटी के द्वारा, जग में चेत जगातीं।।

हर उत्सव औ प्रेम रूप में, सुख की धूम मचातीं।

कभी-कभी रोटी ही घर में, दुख के क्षण दिखलातीं।।

अटल सत्य, हर जटिल रोग का, रोटी ही उपचार है।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 17 ) रोटी की अतुलित छाप

रोटी की गाते हैं महिमा, पर्वत, गिरि, चट्टानें।

हिमाच्छादित सकल चोटियाँ, पाषाणी खादानें।।

रोटी जाग्रत करती सबको, कर्म सत्य बतलाती।

भारत महिमा देख-देखकर, अरि-छाती दहलाती।।

रोटी सबको नित देती है, नव जीवन-परिवर्तन।

धनिक सदा मन में मदमाते, खुश होते हैं निर्धन।।

इसके अंदर भरा हुआ अति, मानव को सत्कार है।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 18 ) पंजाब की रोटी

भिन्न क्षेत्र की, भिन्न राज्य की, रोटी में है जादू।

पंज प्रांत की रोटी खाकर, लोग बने अति स्वादू।।

इसकी धरती भाँति-भाँति की, रोटी है उपजाती।

इसके वीरों की कीरत को, सकल धरा है गाती।।

मुगलों से आजादी पाने, सबने फर्ज निभाया।

बिना झुके ही रिपु के सम्मुख, भुजबल को दिखलाया।।

इनकी अतुल कहानी अनुपम, भक्ति बनी आधार है।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 19 ) रोटी के पुजारी

रोटी के हैं लाल सभी हम, जीवन हमें दिखाती।

ये रोटी ही जग के ऊपर, अपना प्यार लुटाती।।

इससे मानव के अंदर ही, जलती जीवन-ज्योति।

जीवन मिल जाने से प्राणी, बनता माणिक-मोती।।

इसके कारण ही सजते नित, भक्ति-भाव के  सपने।

संत, मनीषी, ज्ञानी, ध्यानी, लगते माला जपने।।

रोटी के ही कारण बहती, जीवन में रस-धार है।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 20 ) रोटी की शक्ति

रोटी के पीछे सब मरते, रोटी सबका गढ़ है।

सारे झगड़ों के ही पीछे, केवल रोटी जड़ है।।

जीवनभर अति प्यार दिखाते, संपति धरें अपारा।

लेकिन सुत केवल करते हैं, रोटी का बँटवारा।।

पाप-पुण्य की ये रोटी ही, नहीं अधिक बँट पाती।

तो ये रोटी स्वार्थ-भावना, भरकर  छुरी चलाती।।

ऐसी लड़ने वाली सारी, संतति को धिक्कार है।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 21 ) रोटी का भय

देख बुढ़ापा अपने तन पर, नर मन में अकुलाता।

दुनिया से सबको जाना है, नर इससे घबराता।।

सुत के उदर पालने के हित, निशदिन पाप किए थे।

दीन-हीन के हक को खाकर, अनगिन श्राप पिए थे।।

देख सत्यता नश्वर जग की, प्रभु से विनती करता।

केवल आहों से ही मन की, दुखमय झोली भरता।।

रोटी भले अमर है जग में, पर मानव लाचार है।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 22 ) बिना श्रम के रोटी

बिन श्रम वाली रोटी खाकर, मानव सुख को पाता।

व्यर्थ वही नर अपने मन में, अहंकार दिखलाता।।

अपनी करतूतों के कारण, जग-विनाश को लाता।

दया, धर्म औ मानव-तन पर, पाप घनेरा छाता।।

अहं भाव धरकर निज मन में, मनमानी नित करता।

राष्ट्रघात करके वह मानव, दानवता को भरता।।

ऐसे नर के मुख में रोटी, करती हा-हाकार है।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 23 ) राष्ट्रभक्तों की रोटी

चुने गए थे दो सुत प्यारे, इंद्रप्रस्थ के घर में।

नित्य गूँजती  उनकी महिमा, भारत-जीवनभर में।।

रोटी ने ही सकल राष्ट्र को, भक्तिभाव दिखलाया।

रोटी कितनी रखे ऊर्जा, जन-जन को बतलाया।।

श्रम की रोटी खाकर ही नर, देशभक्ति है करता।

बिना कमाई रोटी खाकर,धन-दौलत पर मरता।।

इसीलिए ज्ञानी कहते हैं, इसमें सार अपार है।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 24 ) रोटी का प्रलाप

इस जग में रोटी से बढ़कर, सुख-सुविधाएँ होतीं।

तब ये रोटी देख मनुज को, मन ही मन में रोतीं।।

अपना रूप दिखाने के हित, सदा भटकती रहतीं।

रोटी को अपनी ही छाया, सदा खटकती रहतीं।।

ज्ञानवान औ संत-सुसज्जन, सच का ज्ञान कराते।

रोटी ही जीवन देती है, सब अनमोल बताते।।

रोटी से ही रोग बढ़ें नित, रोटी ही उपचार है।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 25 ) रोटी और चेतना

देश-भक्त इस रोटी में ही, मोह न कुछ भी धरते।

रोटी को वे त्याग, स्वयं को, राष्ट्र-समर्पित करते।।

उन वीरों की सुंदर काया, मिट्टी में मिल जाती।

ऐसे वीरों की ये कीरति, यश की ज्योति जलाती।।

इन वीरों की महिमा अगणित, यश को ये ही पाते।

इनकी गाथा को ही जग में, आज सभी हम गाते।।

ऐसे वीर धन्य हैं जग में, रोटी का उद्गार है।।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 26 ) परिश्रम की रोटी

मेहनत करने वाले नर सब, मान बहुत ही करते।

अपने श्रम के द्वारा निशदिन, ध्यान इसी में धरते।।

शूकर-कूकर इस रोटी को, नष्ट कभी ना करते।

इसीलिए वे इसे छिपाकर, पेट इसी से भरते।

ऐसा घर जो सदा सुखी है, रोटी का घर होता।

कलह भरा, झगड़ालू घर का, दाना-दाना रोता।।

रोटी कहती खाओ मुझको, जग मेरा ही सार है।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 27 ) ममता की रोटी

मानव-जीवन में ये रोटी, माँ का भाव जगाती।

राष्ट्र-सुरक्षा के हित में ये, भक्ति-भाव फैलाती।।

ये दुनिया है गोल रूप में, सबको ये समझाती।

रोटी ही जीवन है जग में, भाव यही बतलाती।।

जीवन में जीने के गुण भी,  रोटी से ही आए।

रोटी ही इस सकल धरा की, अंतिम भूख बुझाए।।

इसके कारण ही ईश्वर का, रूप हुआ साकार है।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 28 ) सृष्टि और रोटी

इस रोटी ने सृष्टि सँवारी, सबने ली अँगड़ाई।

इस रोटी ने मुख में जाकर, अमर कला उपजाई।।

इस रोटी को माना जीवन, बन गई प्रेम कहानी।

इस रोटी ने दिया सभी को, अपना दाना-पानी।।

इस रोटी के कारण अगणित, रिपु ने महल गिराए।

इस रोटी को खाकर भू ने, गीत मधुरतम गाए।।

इस रोटी में अमर नाम का, गूँज रहा गुँजार है।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 29 ) वीरों की रोटी

वीर शिवाजी जैसे योद्धा, इसने ही उपजाए।

महाराणा ने राष्ट्रभक्ति के, बल-पौरुष दिखलाए।।

हल्दीघाटी सबसे कहती, वीर-पराक्रम गाथा।

पन्ना धाय ने गर्वित होकर, उन्नत कीन्हा माथा।।

रामचंद्र ने लंका जाकर, धर्मयुद्ध ललकारा।

धोखे वाले चक्रव्यूह में, अभिमन्यु को मारा।।

रोटी ने ही इस जगती में, रचा वीर  शृंगार है।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 30 ) केवट की रोटी

गंगा-तट पर उस केवट ने, प्रभु के चरन पखारे।

अपनी नौका के द्वारा ही, तीनों पार उतारे।।

केवट ने यह भाग्य सँवारा, बात न समझो छोटी।

मैं भी प्रभु के धम जाऊँगा, खाकर श्रम की रोटी।।

छूकर प्रभु की चरण धूल को, पत्थर बन गई नारी।

बिन श्रम की रोटी के कारण, बनते अत्याचारी।

रोटी में तप, रोटी में जप, इसमें ही रसधार है।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 31 ) अहंकारियों की रोटी

जब भी मानव को निज बल पर, अहम हुआ है भारी।

तब-तब वह मानव धरती पर, देखा निपट भिखारी।।

बड़े-बड़े अति वीर-शूरमा, धरती पर थे आए।

रोटी के कारण ही सबने, बल-करतब दिखलाए।।

इस रोटी ने दिया विपुल बल, हर दिन शाम-सकारे।

रोटी ने ही सकल जगत के, अतिशय काम उबारे।।

इसीलिए ये रोटी जग में, परमेश्वर-अवतार है।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 32 ) आक्रांता की रोटी

भारत की रोटी पाने को, आक्रांता ललचाए।

क्रूर लुटेरे और दुष्ट जन, चोरी से घुस आए।।

रोटी की रक्षा की खातिर, रण में बिगुल बजाया।

यवन और अति म्लेच्छ जनों को, घर से दूर भगाया ।।

वेद-शास्त्र से पूरित रोटी, सबको पास बुलाती।

जीवन की नश्वर माया का, खुलकर बोध् कराती।।

छूट  यहीं जाती है काया, कैसा ये अधिकार है।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 33 ) रोटी में ज्ञान

रोटी ने ही मनुज मनीषी, वीर-व्रती जन्माए।

रोटी ने ही अति निर्दय जन, पापी दुष्ट मिटाए।।

भारत की रोटी को खाकर, अपना कर्म निभाया।

रोटी से मुक्ति मिलती है, ये जग को समझाया।।

श्रम से पाने वाली रोटी, जीवन सफल बनाती।

घर में देती सुमति भावना, तन में बल भर जाती।।

रोटी की महिमा है न्यारी, ये ही गीता-सार है।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 34 ) रामावतार में रोटी

राम-जन्म दशरथ-घर पाकर, पुरवासी हर्षाए।

जीवन धन्य हुए हैं सबके, प्रभु धरती पर आए।।

ऋषि-मुनि सारे प्रभु दर्शन को, ध्यान लगाकर  बैठे।

भक्त प्रभु के अति हर्षित थे, मन में थे सब ऐंठे।।

दुष्ट और पापी जन सारे, मन ही मन घबराए।

करने जीवन धन्य स्वयं का, प्रभु के गुण ही गाए।।

सकल विश्व में गूँज रही है, रघुपति की जयकार है।।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 35 ) नृसिंह अवतार में रोटी

कंस नृपों में क्रूर हृदय था, औ जग में अभिमानी।

कोई बालक रहे न जीवित, विकट प्रतिज्ञा ठानी।।

विष्णु की माया ने उसको, अनुपम खेल दिखाया।

कान्हा को गोकुल पहुँचाकर, भ्रम में उसे फँसाया।।

बंदी-गृह में हिंसा करने, कंस वहाँ पर आया।

उस कन्या को तुरत मारने, अपना हाथ उठाया।।

वह मूरख क्या जाने इसको, माया का अवतार है।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 36 ) बालकृष्ण की रोटी

शिशुपन में श्री बालकृष्ण ने, भर ली मुख में रोटी।

मात यशोदा को दिखलाई, सकल सृष्टि अति छोटी।।

देख कृष्ण के मुख में अनुपम, छटा धरा की न्यारी।

यशुदा ने कौतूहल वाली, हँसी दिखा दी प्यारी।।

देख पुत्र के मुख में अद्भुत, माँ  का मन चकराया।

रोटी में ब्रह्माण्ड छुपा है, ये माँ को समझाया।।

रोटी से ही प्राण-श्वास है, रोटी की झंकार है।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 37 ) ब्रह्ममय रोटी

रोटी ब्रह्मा, रोटी विष्णु, रोटी सत्य महेश है।

रोटी के बिन इस जगती में, बचा न कुछ भी शेष है।।

भूख-प्यास पीड़ा से बाधित, जो भी रोटी खाता।

खाने वाला तुरत हृदय में, विपुल शक्ति को पाता।।

रोटी की महिमा है न्यारी, सारे इसको खाते।

रोटी के द्वारा ही प्राणी, अपनी भूख बुझाते।।

रोटी की ही शक्ति जगत में, दीख रही साकार है।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 38 ) रोटी की झाँकी

चोर, घोर औ दुष्ट जनों को, दूषित होती रोटी।

इसीलिए ये पामर नर को, रोटी बनती खोटी।।

इस रोटी में परम ज्ञान की, अतिशय  ज्योति समानी।

इस रोटी के गुण को पाने, खाते सारे ज्ञानी।।

नालंदा औ तक्षशिला की, अनुपम रोटी-गाथा।

मंदिर में रोटी की मूरत, सारे टेकें माथा।।

सबके जीवन में ही इसका, भरा हुआ उद्गार है।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 39 ) ब्रज की रोटी

कंस-दंश से थे सब पीड़ित, दुख में प्रजा पुकारी।

साधु-संत की रक्षा करने, आओ कृष्ण मुरारी।।

भादों की आठें को जन्मे, मथुरा में ब्रजवासी।

दुष्ट और पापी सब मारे, देकर सबको फाँसी।।

गोकुल की रोटी ने प्रभु के, चरणों की रज पाई।

पाकर कान्हा ब्रज भूमि में, सकल धरा हर्षाई।।

इस रोटी में भाव-भक्ति की, बहती मधुर बयार है।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 40 ) वीरों की रोटी

भारत की रोटी खाने को, मुगल देश में आए।

भारत के वीरों ने अद्भुत, भुजबल शौर्य दिखाए।।

भारत की संस्कृति है अनुपम, नियम,धर्म कब छोड़ा।

क्रूर लुटेरों ने यहाँ आकर, अपना मजहब जोड़ा।।

धर्म यवन का रोता है अब, देख बाँकुरे प्यारे।

भारत की धरती में जन्मे, वीर-शूरमा न्यारे।।

आज उन्हीं वीरों के कारण, हुआ दूर व्यभिचार है।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 41 ) राजस्थानी रोटी

राजस्थानी रोटी को हम, मिलकर शीश झुकाएँ।

हल्दी घाटी की मिट्टी को, श्रद्धा सुमन चढ़ाएँ।।

इस धरती की अमर कहानी, मानव-शक्ति दिखाती।

वीर शहीदों की ये धरती, नित गाथा बतलाती।।

दुर्गावति की अमर कहानी, पद्मा-जौहर-ज्वाला।

याद रहेगा सकल विश्व को, चेतक घोटक, भाला।।

रण में मरना, रिपु से लड़ना, क्षत्रिय का  शृंगार है।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 42 ) महाराष्ट्र की रोटी

मुगल शासकों ने जब छीनी, वेद-ज्ञान की रोटी।

संकट में थे धर्मशास्त्र औ तिलक, जनेऊ, चोटी।।

भारत के महाराष्ट्र प्रांत ने, ऐसा सिंह बनाया।

निज भुल बल पर हिन्दू ध्वज को,भारत में लहराया।।

औरंगजेब डरा था उससे, मुगलई रंग उतारा।

वीर शिवा के कारण गूँजा, महादेव का नारा।।

हिंद राज का पर्व मनाती, जिसकी रण तलवार है।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 43 ) गुरुपुत्रों की रोटी

फतह और जोरावर सिंह का, रोटी धन्य मनाती।

गुरुपुत्रों को चिना भित्ति में, सकल धरा दहलाती।।

राष्ट्र, धर्म की रक्षा के हित, कभी न शीश झुकाया।।

बने अमर बलिदानी दोनों, राष्ट्र-प्रेम अपनाया।

क्रूर, निर्दयी, अत्याचारी, शासक मुगल कहाए,

धर्म-ध्वजा फहराने वाले, अमर शहीद बताए।।

इसीलिए हम सारे करते, उनकी जय-जयकार है।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 44 ) बंगाली रोटी

बंगाली भूमि की रोटी, ने ली थी अँगड़ाई।

देश-भक्ति रक्षा के हित में, जागी थी तरुणाई।।

राष्ट्र-धर्म है सबसे ऊपर, सबने यही पुकारा।

मारो या मर जाओ रण में, दिया श्रेष्ठतम नारा।।

यवनों को लोहा मनवाने, रण का बिगुल गुँजाया।

नेता जी की तरुणाई ने, अनुपम ज्वार जगाया।।

बंग-भूमि की इस रोटी पर, सबका ही अधिकार है।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 45 ) अयोध्या की रोटी

चैत मास की नवमी तिथि को, भू पर आई ज्योति।

राजा दशरथ-कौशल्या के घर, प्रकटे हीरा-मोती।।

निज भुज बल पर वसुध-हित में , अनुपम रूप दिखाए।

पाकर राम अयोध्यावासी, अतिशय मन हर्षाए।।

द्वादश गुण की कला दिखाकर, जग को मार्ग बताया।

अपने गुण-कौशल के द्वारा, भारत देश जगाया।।

दानव हुए पराजित सारे, छाई भक्ति अपार है।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 46 ) उत्तर प्रदेश की रोटी

उत्तर प्रांत सदा से उत्तम, भारत में कहलाया,

इस धरती ने राम-कृष्ण को अपने ही घर जाया।

इस वसुध पर ऋषि-मुनि सारे, क्रीड़ा करने आए,

इस भूमि ने ज्ञान-विवेकी, बुद्धि प्रखरतम पाए।

लक्ष्मीबाई की यश-गाथा, मिलके हम सब गाते,

परशुराम की महिमा गाकर, भूसुर नित हर्षाते।

विद्या और ज्ञान के कारण, नित छाया उजियार है।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 47 ) दानवीर बलि की रोटी

त्याग-दान से बलि राजा भी, दानवेंद्र कहलाए।

किया दान सारी धरती को, वचन न डिगने पाए।।

स्वयं बँधे प्रभु के पाशे में, स्वयं रसातल जाकर।

नाम अमर प्रभु ने कर डाला, सत्य वचन को पाकर।।

रोटी का था फर्ज निभाया, सत्य, शील को धरा।

दिया ज्ञान इस मानवता को, बन आदर्श हमारा।।

कर्म सदा ऊपर रहते हैं, इसीलिए सत्कार है।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 48 ) मेहनत की रोटी

मेहनत से अर्जित रोटी ही, तन में शक्ति जगाती।

विपद् क्षणों में ये रोटी ही, अति संयम दरसाती।।

इस रोटी ने राष्ट्र भक्ति के, अगणित पाठ पढ़ाए।

इस रोटी ने वीर-तपस्वी, देशभक्त हैं जाए।

यह रोटी ही सकल जगत को, गौरव ज्ञान सिखाती।

श्रम की रोटी मानव तन में, दिव्य तेज दिखलाती।।

यह रोटी ही इस धरती पर, जीवन का उपहार है।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 49 ) केरल की रोटी

अभिनव शंकर ने केरल में, अनुपम शंख गुँजाया।

है नश्वर ये काया सबकी,  जग को सत्य बताया।।

जगद्गुरु माना था सबने, अतुलित ज्ञानी पाकर।

ब्रह्मसूत्र की ज्योति जलाई, नित ही घर-घर जाकर।।

वेद-पुराणों की महिमा के, अतिशय रत्न लुटाए।

आर्य जगत का छुपा खजाना, सबके सम्मुख लाए।।

इस रोटी में गुंजित अब भी, सत्य सनातन सार है।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 50 ) कृषक की रोटी

इस वसुध के सकल खेतिहर, हैं जग के वे स्वामी।

कुत्सित राजनीति ने उनको, बना दिया अविरामी।।

करके खेती, अन्न उगाकर,  जीवन-ज्योति जगाता।

खुद चाहे तन पर दुख सहता, सबको सुखी बनाता।।

उसने निशदिन इस धरती पर, सुरभित सुमन खिलाए ।

मानव जीवन है अति उत्तम, भाव यही बतलाए।।

उसके साहस शौर्य शक्ति पर, आश्रित हर घर-द्वार है।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 51 ) रोटी का सत्कार

रोटी देती सबको जीवन, ये करती सबका पालन।

रोटी से जग भासित होता, करती उर में संचालन।।

रूप बदलकर ये रोटी ही, सबको सुखद बनाती।

प्राणी के जीवन में रोटी, शक्ति विपुल भर जाती।।

देख रहे सारे नर-नारी, इसकी महिमा न्यारी।

भूख लगे पे ये लगती है, अतिशय सबको प्यारी।।

इसीलिए इस रोटी का ही, धरती पर सत्कार है।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 52 ) पथभ्रष्टों की रोटी

कहती रोटी पथ-भ्रष्टों से, ओ धन के मतवारे।

मेरे अंदर भरे हुए हैं, केवल सपने प्यारे।।

जिसको तू अनमोल मानता, कभी न रहने वाला।

नश्वर तन पर अकड़ दिखाता, क्यों बनता मतवाला।।

त्याग सभी थोथे सपनों को, भज ले नित अवतारी।

सब कुछ तुझको मिल जाएगा, देख धरा सुकुमारी।।

बिन मेहनत के यहाँ सभी का, जीवन भी निस्सार है।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 53 ) रोटी का अंतिम उपदेश

ये रोटी ही अंत समय पर, अपना पर्व मनाती।

मानव-काया कैसे जलती, ऐसा दृश्य दिखाती।।

निज मानव का अर्जित धन ही, उसको खाक बनाता।

मानव-तन है नश्वर जग में, यही बात समझाता।।

मोह व्यर्थ है इस रोटी से, शास्त्र हमें समझाते।

है ये खेल प्रकृति का अनुपम, सबको यही बताते।।

कर्म किए बिन जीवन कैसा, नहीं कोई उपचार है।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 54 ) रोटी-रोटी में भेद

देखे धनिक सुखी जीवन में, निर्धन आँसू पीता।

भीख माँगकर खाता कोई, कोई सुख से जीता।।

मानव की ये देख दुर्दशा, रोटी अकड़ दिखाती।

ये रोटी मानव के तन पर, लाठी सदा चलाती।।

वसुधा पर ये भेद निराला, है ये प्रभु की माया।

इसके कारण दुखियाती है, ये मानव की काया।।

अपना-अपना कर्म निराला, ये सबका व्यवहार है।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 55 ) जग की नश्वरता

जग में मानव के दर्शन की, हवा मधुरतम छाई।

स्वप्न खुशी के आलिंगन की, मधुरिम बेला आई।।

जब भी मानव त्याग जगत को, नींद सदा की सोता।

गंगा के तट उसका सुंदर, रूप विसर्जित होता।।

पहले कभी न सोचा उसने, एक दिवस है जाना।

पहले कभी न प्रभु को ध्याया, अंत समय  पछताना।।

केवल बातों में कब किसकी, टिकी रही दीवार है।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 56 ) मानव-कर्म

कर्म सँवारा जब मानव ने, दिव्य कला दिखलाई।

भक्ति, तपस्या, के द्वारा ही, उर में शक्ति जगाई।।

अंत समय आया जब उसका, नर मन में घबराया।

प्रकृति निराली है धरती की, स्वजनों को बतलाया।।

कभी न समझा सच्चाई को, केवल धन को जोड़ा।

मानव ने करतूतों द्वारा, पापों का घट फोड़ा।।

है जीवन की ये परिपाटी, ये नश्वर घर बार है।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 57 ) रोटी की ललकार

धोखे वाली ये रोटी ही, मानव को ललकारे।

जागो भारत के सब पूतो, रोती हुई निहारे।।

ऐसा ना हो मानव अरमाँ, मिट्टी में मिल जाए।

एक दिवस ऐसा भी आए, इसको छू न पाए।।

आओ हम सब इसे निभाएँ, अपनी जिम्मेदारी।

क्योंकि एक दिवस करनी है, जाने की तैयारी।।

इस रोटी की रक्षा का अब, सचमुच नर पर भार है।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 58 ) जग का प्रताप

इस रोटी को खाने वाले, संत-कवि अति आए।

सुदर वर्ण, वदन में अनुपम, मानव छवि में छाए।।

जिन्हें देखकर सकल धरा अति, मन में थी हर्षाई।

शस्य श्यामला प्रकृति गोद में, भू ने ली तरुणाई।।

आज वही धरती अब मन में, दुखियाकर है रोती।

मानव ने निज कर्मों द्वारा, सुखद बुझाई ज्योति।।

पहले ऋषि-मुनि के कारण ही, आती रही बहार है।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 59 ) देवों की रोटी

सोने से ही स्वर्ग भरा है, सोने का है पानी।

सोने की है नगरी सारी, सोने की गुड़धानी।।

मरने वाले लोगों ने कुछ, गुप्त भेद बतलाए।

धरती पर ये सभी देवता, रोटी खाने आए।।

सोने में ना स्वाद अन्न का, सोना कैसे खाते।

इसीलिए शंकर धरती की, माथे भस्म लगाते।

इस रोटी में सकल जगत के, जीवन की जलधर है।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 60 ) मानवता की रोटी

धरती के मानव की किस्मत, कभी दीखती खोटी।

कैसे ज्ञान मिले इस नर को, यही सोचती रोटी।।

मानव की ये व्यथा-कथा को, सबसे खुलकर कहती।

मुक्ति न मिलती जब मानव को, हृदय वेदना सहती।।

गूढ़ रहस्य है इस रोटी का, कोई तो सुलझाए।

किस कारण से सारे मानव, धन पाने ललचाए।।

रोटी के प्रति नित्य जगत का, इक तरपफा व्यवहार है।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 61 ) मानवता का योगदान

रोटी ही रोटी को खाती, इसकी अजब कहानी।

रोटी की महिमा गाता है, इस भूतल पर प्रानी।।

रोटी के आने से पहले, भू पर जल ही जल था।

रोटी के बिन इस धरती पर, कब मानव का बल था।।

रोटी के कारण ही भू पर, जीवन-बादल छाए।

रोटी ने ही अपने बल पर, नित करतब दिखलाए।।

रोटी से सबको जगती में, मिलती जीवन-धर है।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 62 ) कवियों की रोटी

गीतों के आयोजन में जाकर, कवि सब गीत सुनाते।

अपने गीत-गजल को सारे, मुखरित हो कर गाते।।

कोई गीत छंद में लिखता, कोई गद्य में गाता।

कवि अपनी कविता को रचकर, मन ही मन हर्षाता।।

ओज-भरी कविता के द्वारा, देशभक्ति बतलाते।

कभी हास्य के गीतों द्वारा, सच्चाई दिखलाते।।

इनके सब गीतों में मधुरिम, सुर होता उच्चार है।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 63 ) नेताओं की रोटी

मंचों पर जाकर ये नेता, भाषण खूब सुनाते।

हलुआ, पूड़ी और कचौड़ी, जी भर सारे खाते।।

भाषण पर ताली बज जाए, लगे भीड़ मतवारी।

झूठे सपने वाली बातें, सबको लगतीं प्यारी।।

सहज, सलोना भाषण सुनकर, मुख में आता पानी।

नेता के सम्मुख बन जाते, सारे मूरख ज्ञानी।।

मानव ही मानव को देता, धोखे का ये सार है।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 64 ) रोटी का संदेशा

मानव-हित में शांति संदेशा, ये रोटी ही लाई।

शांति-अहिंसा की सब बातें, रोटी ने समझाई।।

पर इस मानव ने निज गुण को, स्वारथ में है मारा।

‘यह मेरा है’ कहने वाला, भाव लगे अति प्यारा।।

आज मनुज ने ऊँच-नीच का, भेद यहाँ उपजाया।

एकाकी जीवन जीने का, समय घरों में आया।।

भेद-भाव को छोड़ें सारे, समरसता अधिकार है।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 65 ) रोटी और वृक्ष

पेड़ों की छाया मानव की, महकाती फुलवारी।

इसीलिए सबको लगती है, जीवन में अति प्यारी।।

मानव इनके फल को खाकर, मन ही मन मुस्काता।

बड़, पीपल औ नीम धरा पर, छाया सुखद बनाता।।

बगिया पेड़ों वाली जग में, सुंदर सुमन खिलाती।

रोटी ही रोटी से जाकर, अद्भुत मेल कराती।।

हर प्राणी इनके ही ऊपर, देखा मिला सवार है।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 66 ) भारत की रोटी

रोटी को पाने की खातिर, आक्रांता घुस आए।

किया नष्ट इस भारत भू को,  जन-मानस में छाए।।

भारत की पावन संस्कृति को, लग गए सभी हटाने।

वैदिक सारे साक्ष्य देश के, जुट गए सभी मिटाने।।

ऋषि-मुनियों की गौरव गाथा, है अत्यंत पुरानी।

इस रोटी को खाकर जन्मे, संत, मनीषी, ज्ञानी।।

इसी भूमि पर देवों ने भी, लिया विष्णु अवतार है।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 67 ) भारत का ज्ञान

इस भारत की रोटी खाकर, जन्मे अतिशय ज्ञानी।

छात्रा जहाँ पढ़ने आते थे, चीनी औ जापानी।।

सब आचार्य ज्ञान से पूरित, तेज तपस्या वाले।

जिनके सम्मुख ठहर न पाए, सारे उर के काले।।

सबको ही मिलता था अनुपम, जीवन विद्या वाला।

इसीलिए शिष्यों के मन से, हटता तम का ताला।।

रोटी है ये परम निराली, ऐसा ही सुविचार है।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 68 ) प्यार और रोटी

यह रोटी ही मानव-तन में, रूप नया दिखलाती।

मानव को मानव से जग में, गुप-चुप दूर कराती।।

यह रोटी ही धनिक जनों से, रखती प्यारा नाता।

इस रोटी का दर्प जगत में, अहंकार मन लाता।।

रोटी के कारण ही घर में, प्यार परस्पर पाया।

पति-पत्नी के बीच जुड़ी है, मोह भरी ये काया।।

प्यार-मुहब्बत सबके सम्मुख, रोटी पहला द्वार है।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 69 ) स्वास्थ्य और रोटी

श्रम की रोटी स्वस्थ करे तन, देती निर्मल छाया।

आलस, दंभी, पामर नर की, करती रोगी काया।।

ये रोटी उपचार रूप में, तन से रोग हटाती।

जीवन को सुख-सौरभ देती, उत्तम स्वास्थ्य बनाती।।

जिसने सुंदर जीवन शैली, इस जग में अपनाई।

सारे रोग हटाने खातिर, रोटी आगे आई।।

इसीलिए ये रोटी सब का, कहलाती आहार है।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

( 70 ) रोटी का उपकार

इस रोटी ने परम पिता का, हमको ज्ञान कराया।

इस रोटी ने सकल धरा का, अतिशय मान बढ़ाया।।

इस रोटी ने सब जीवों को, जीवन-दान दिया है।

इस रोटी ने साँसें देकर, भव से पार किया है।।

इस रोटी के ऊपर ही हम, निज सर्वस्व लुटाते।

इस रोटी के द्वारा ही हम, जग ‘अनमोल’ बताते।।

इस रोटी ने मानव तन पर, किया विपुल उपकार है।

रोटी दो दिन की है साथी, क्यों रोटी से प्यार है।।

***

आज धरा रोटी-गुण गाती, इसका रूप सुहाया।

अटल रहो निज कर्म क्षेत्रा में, सबको यह समझाया।।

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