किसी संकल्पित फल प्राप्ति के लिए दिनभर या कुछ समय के लिए भोजन, पानी या दोनों का त्याग करना व्रत कहलाता है। व्रत में संयम, और नियमों का पालन किया जाता है। व्रत किसी भी दिन और किसी भी कारण से या संकल्प पूर्ति के लिए किया जा सकता है। वास्तव में व्रत करने का मतलब किसी प्रतिज्ञा की पूर्ति से है। किसी कार्य को पूरा करने का संकल्प लेना भी व्रत कहलाता है। व्रतों के अनेक कारण व प्रकार होते हैं। जैसे- 1.साप्ताहिक– सप्ताह के दिनों के आधार पर सोमवार, मंगलवार व्रत आदि। 2.पाक्षिक– एक पक्ष में आने वाले एकादशी, प्रदोष व्रत आदि।
3.तिथियों के आधार पर- एकादशी, गणेश चतुर्थी आदि, मासिक- पूर्णिमा, अमावस्या आदि, वार्षिक- किसी विशेष त्योहार जैसे- श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, शिवरात्रि, वटसावित्री, करवा चैथ व्रत आदि।
इनके अतिरिक्त भी मनुस्मृति में उल्लेखित व्रत होते हैं जैसे चांद्रायण- (चंद्रमा की घटती-बढ़ती कलाओं के समान धीरे-धीरे कम-ज्यादा खाना), अयाचितव्रत- (किसी से बिना याचना के खाने का व्रत), मधुकरी-(अपने पात्रों में एक बार ही लेना), मितभुक्त- (कम खाने का व्रत लेना) और नक्तव्रत-(रात में न खाने का व्रत)। महालक्ष्मीव्रत भाद्रपद शुक्ल अष्टमी को प्रारंभ होकर सोलह दिनों में पूर्ण होता है। मेष संक्रांति को सुजन्मावाप्ति व्रत किया जाता है।
नक्षत्रों में अश्विनी नक्षत्र में शिवव्रत, योगों में विष्कुंभ योग में धृतदानव्रत और करणों में नवकरण में विष्णुव्रत का अनुष्ठान विहित है। भक्ति और श्रद्धानुकूल चाहे जब किए जानेवाले व्रतों में सत्यनारायण व्रत प्रमुख है।
व्रत से जुड़ी कुछ और बातें : –
1. व्रत रखने के कई उद्देश्य होते हैं। जैसे कि आत्मा को शुद्ध करना, आध्यात्मिक ऊर्जा बढ़ाना, और शारीरिक और मानसिक स्वस्थता लाना।
2. व्रत रखने से पेट से जुड़ी समस्याएँ भी दूर होती हैं और पाचन तंत्र बेहतर तरीके से काम करने लगता है।
3. व्रत के दौरान शरीर से विषाक्त पदार्थ बाहर निकल जाते हैं।
4. व्रत के दूसरे दिन पारण करने से पूर्व जरूरतमंद लोगों को भोजन दान दिया जाता है।
नित्य, नैमित्तिक और काम्य, इन भेदों से व्रत तीन प्रकार के होते हैं।
1. नित्यव्रत- जिस व्रत का आचरण सर्वदा के लिए आवश्यक है और जिसके न करने से मानव दोषी होता है वह नित्यव्रत है। जैसे- सत्य बोलना, पवित्र रहना, इंद्रियों का निग्रह करना, क्रोध न करना, अश्लील भाषण न करना और परनिंदा न करना आदि नित्यव्रत हैं।
2. नैमिक्तिक व्रत- किसी प्रकार के पातक के हो जाने पर या अन्य किसी प्रकार के निमित्त के उपस्थित होने पर चांद्रायण प्रभृति जो व्रत किए जाते हैं वे नैमिक्तिक व्रत हैं।
3. काम्य व्रत- जो व्रत किसी प्रकार की कामना विशेष से प्रोत्साहित होकर मानव के द्वारा संपन्न किए जाते हैं वे काम्य व्रत हैं।
पुरुषों एवं स्त्रियों के लिए पृथक व्रतों का अनुष्ठान कहा है। कतिपय व्रत दोनों के लिए सामान्य हैं तथा कतिपय व्रतों को दोनों मिलकर ही कर सकते हैं।
1. पुरुषों के लिए- श्रवण शुक्ल पूर्णिमा, हस्त या श्रवण नक्षत्र में किये जानेवाला उपाकर्म (श्रावणी) व्रत केवल पुरुषों के लिए विहित है।
2. स्त्रियों के लिए- भाद्रपद शुक्ल तृतीया को हरितालिक व्रत केवल स्त्रियों के लिए कहा है।
3. पति-पत्नी के लिए- एकादशी जैसा व्रत दोनों ही के लिए सामान्य रूप से विहित है।
4.शुभ मुहूर्त में किए जाने वाले कन्यादान जैसे व्रत केवल दंपति के द्वारा ही किए जा सकते हैं।
मनुष्य को पुण्य के आचरण से सुख प्राप्त होता है। हमारे ऋषिमुनियों ने वेद, पुराण, स्मृति और समस्त ग्रंथों के आधार पर मानव के कल्याण हेतु सुख की प्राप्ति तथा दुख की निवृत्ति के लिए अनेक उपाय कहे हैं। उन्हीं उपायों में से व्रत श्रेष्ठ तथा सुगम उपाय हैं। व्रतों के विधान करने वाले ग्रंथों में व्रत के अनेक अंगों का वर्णन देखने में आता है। उन अंगों का विवेचन करने पर ज्ञात होता है कि उपवास भी व्रत का एक प्रमुख अंग है। यदि प्रमादवश उपासक ने आवश्यक व्रतानुष्ठान नहीं किया और उसके अंगभूत नियमों का पालन नहीं किया तो देवता उसके द्वारा समर्पित हविर्द्रव्य स्वीकार नहीं करते। केवल एक बार भोजन, तृण से आच्छादित भूमि पर रात्रि में शयन और अखंड ब्रह्मचर्य का पालन प्रभृति समस्त आवश्यक नियमों का पालन करता है।
व्रती के लिए अनुष्ठान के समय मद्य, मांस प्रभृति निषिद्ध द्रव्यों का सेवन तथा प्रातःकाल एवं सायंकाल के समय शयन वर्जित है। सत्य और मधुर भाषण तथा प्राणिमात्र के प्रति कल्याण की भावना रखना आवश्यक है।
वैदिक काल की अपेक्षा पौराणिक युग में अधिक व्रत देखने में आते हैं। इस काल में व्रत के प्रकार अनेक हो जाते हैं। व्रत के समय व्यवहार में लाए जाने वाले नियमों की कठोरता भी कम हो जाती है तथा नियमों में अनेक प्रकार के विकल्प भी देखने में आते हैं। उदाहरण रूप में जहाँ एकादशी के दिन उपवास करने का विधान है, वहीं विकल्प में लघु फलाहार और वह भी संभव न हो तो फिर एक बार चावल रहित अन्नाहार करने तक का विधान शास्त्रसम्मत देखा जाता है। इसी प्रकार किसी भी व्रत के आचरण के लिए निश्चित समय अपेक्षित है।
सत्य और अहिंसा व्रत का पालन करने का समय यावज्जीवन कहा गया है लेकिन कुछ महाव्रतों के लिए समय निर्धारित है। जैसे- वेदव्रत और ध्वजव्रत की समाप्ति बारह वर्षों में होती है। पंचमहाभूतव्रत, संतानाष्टमीव्रत, शक्रव्रत और शीलावाप्तिव्रत एक वर्ष तक किया जाता है। अरुंधती व्रत केवल वसंत ऋतु में होता है।
भारतीय मासों के आधार पर होने वाले व्रत हैं- चैत्रमास में वत्सराधिव्रत, वैशाख मास में स्कंदषष्ठीव्रत, ज्येठ मास में निर्जला एकादशी व्रत, आषाढ़ मास में हरिशयनव्रत, श्रावण मास में उपाकर्मव्रत, भाद्रपद मास में स्त्रियों के लिए हरितालिकाव्रत, आश्विन मास में नवरात्रव्रत, कार्तिक मास में गोपाष्टमीव्रत, मार्गशीर्ष मास में भैरवाष्टमीव्रत, पौष मास में मार्तंडव्रत, माघ मास में षट्तिलाव्रत और फाल्गुन मास में महाशिवरात्रिव्रत प्रमुख हैं।
6 दिसम्बर 2024 @ 10:27 पूर्वाह्न
इस लेख में है आचार्य अनमोल ने व्रत और उत्सव की सही जानकारी दी है। वास्तव में व्रत कितना जरूरी है और क्यों किया जाता है यह बात बड़ी गंभीरता के साथ बताई है।
महत्वपूर्ण लेख लिखने के लिए मैं आचार्य अनमोल को बधाई देती हूँ।
अरुण मिश्र