राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के परम पूज्य गुरु जी ने माननीय दत्तोपंत ठेंगड़ी जी से पूछा कि मजदूर संघ की स्थापना कब हुई थी? तब उन्होंने बताया कि इसकी स्थापना 1955 में हुई थी। यह सुनकर गुरु जी ने कहा कि मैं तो समझता था कि इसकी स्थापना 1925 में हुई थी। गुरु जी के इस कथन से वे उनका मंतव्य समझ गए। यानी कि किसी भी संस्था से संबंधित कोई भी आनुषांगिक उपक्रम चाहे कभी भी शुरू हुआ हो लेकिन उसकी मूल शुरूआत उसी दिन हो जाती है जब वह मूल संस्था अपने उद्देश्यों के साथ स्थापित होती है।
वास्तव में मूल संस्था पहले बीज रूप में होती है बाद में वही बीज सभी का सहयोग पाकर विभिन्न शाखाओं के रूप में, फल के रूप में, पत्तों के रूप में, फूलों के रूप में फलता फूलता है। इसी तरह ही मूल संस्था के साथ-साथ उनके विभिन्न संबद्ध संस्थाएँ भी फलती-फूलती रहती हैं और अपने उद्देश्य की पूर्ति करती रहती हैं।
एक बार एक प्रश्न पूछा गया कि भारत किसका है तो कई बार पूछने के बाद भी इसका उत्तर ढंग से नहीं आ पाया पहले व्यक्ति ने बताया कि यह भारत हमारा है। फिर पूछा हमारा किन का? उन्होंने कहा कि देश के निवासियों का। फिर पूछा कि देश के किस निवासी का? तब उन्होंने बताया जो यहांँ रहते हैं। वास्तव में जो पूछने का मंतव्य था वह ढंग से नहीं आ पा रहा था। भाव यह है कि इस देश के मूल निवासी हिंदू हैं और इन्हीं के कारण यह देश हिंदुस्तान कहलाता है। हमारे ऋषि-मुनियों का देश होने से भारत के सभी निवासियों का है।
यद्यपि भारत देश 1947 में आज से लगभग 77 वर्ष पूर्व स्वतंत्र हो गया था परंतु यह हमारी स्वतंत्रता भौगोलिक मानी जा सकती है सांस्कृतिक नहीं क्योंकि अभी तक हम कहीं न कहीं संस्कृति के आधार पर पूर्ण रूप से स्वतंत्र नहीं है।
भले ही देश 1947 में स्वतंत्र हुआ लेकिन हमारी यह संस्कृति हजारों हजारों वर्ष पुरानी है राम-कृष्ण, गुरु नानक, महावीर की धरती है और हम सभी उनके अनुगामी हैं।
क्या भारत में विभिन्न प्रकार के विकास होने से भारत का सही रूप बना रहेगा इसका उत्तर है नहीं क्योंकि विकास से विभिन्न प्रकार की फैक्ट्रियाँ लग सकती हैं, व्यापार चालू हो सकते हैं, शिक्षा क्षेत्र बढ़ सकते हैं, नए-नए पुल बन सकते हैं, वायुयान बन सकते हैं परंतु इन सबसे संस्कृति का कोई लेना-देना नहीं है। वास्तव में भारत की मूल आत्मा उसकी संस्कृति में विराजमान है। जब तक संस्कृति का संरक्षण नहीं होगा तब तक यह देश पूर्ण रूप से विकसित नहीं कहा जा सकता।
उपर्युक्त सभी बातों को ध्यान में रखकर यह कहा जा सकता है कि भारत के संरक्षण संवर्धन के लिए पाँच परिवर्तन अवश्य होने चाहिए-
1.समरस समाज- हमें आज समय की स्थिति को बहुत अच्छी तरह समझना चाहिए। पहले जब देश गुलाम था तब हमारे ऊपर बहुत अत्याचार हुए। उन अत्याचारों के कारण देश विभिन्न वर्गों में बँट गया, विभिन्न जातियों में बँट गया। अब देश में ऊँच-नीच की भावना को दूर करना चाहिए। सभी एक समान हैं समाज में समरसता रहेगी तो परस्पर प्यार भी बहुत रहेगा। समरसता रहने से ही दूषित भावना वाले लोग धर्म परिवर्तन कराने में सफल नहीं हो पाएँगे। देश में इस्लामी आक्रांताओं के शासन में शोषण से बचने के लिए, उनसे अपनी सुरक्षा करने के लिए अनेक कुरीतियाँ बन गई थीं। समाज में बाल विवाह जैसी प्रथा चालू हो गई, सती प्रथा शुरू हुई, पर्दा प्रथा, घूँघट प्रथा और समाज में गहराई से जाति प्रथा बढ़ने लगी।
2.भारत की परिवार व्यवस्था- भारत की परिवार व्यवस्था हिंदू जीवन मूल्य आधारित होनी चाहिए। आज परिवारों में विघटन हो रहे हैं। संयुक्त परिवारों की जगह एकल परिवारों में रहने को लोग पसंद करते हैं फिर भी परिवारों में एकता बनी रहे, परस्पर अविश्वास न हो और कटुता का भाव न हो ऐसा प्रयास करना चाहिए। परिवार में आपसी मनमुटाव ही नहीं होता अपितु शारीरिक बीमारियाँ भी बढ़ रही हैं। डिप्रेशन जैसी बीमारी ज्यादा देखने में आ रही है। इन सबकी जड़ में जो मूल कारण है वह हमारा रहन-सहन तो है ही लेकिन उनके साथ में विभिन्न दूषित मानसिकता वाली पिक्चरों का भी प्रभाव है। एक ही परिवार में यदि पाँच लोग हैं तो वे आपस में बात न करके, सामंजस्य स्थापित न करके अपने मोबाइल पर लगे रहते हैं। इसलिए बिना मोबाइल के एक साथ बैठना, खाना खाने से आपसी प्यार बढ़ता है।
वर्तमान में सनातन मूल्यों के विपरीत दूषित विचारधारा बढ़ रही है। इस विचारधारा का नाम है ‘पिंजरा तोड़’। इस विचारधारा के अंतर्गत कुत्सित मानसिकता वाले लोग आज के नवयुवक और युवतियों को अपने जाल में फँसा रहे हैं। उनका कहना है कि प्राचीन परंपरा एक पिंजरा है, घर की मर्यादा में रहना एक पिंजरा है, सनातन मूल्यों का पालन करना एक पिंजरा है। इससे आज के युवकों को बाहर आना चाहिए अपने स्वतंत्र रूप से रहना, विवाह करना, अपने विचारों को प्रकट करना इसका मूल उद्देश्य है। वास्तव में यह विचारधारा पश्चिम से प्रभावित है और हमारी भारतीय संस्कृति को नष्ट करने वाली है। आज हमें अपने नवयुवकों को इससे जागरूक करके दूर रखने की जरूरत है।
3.पर्यावरण पूरक जीवन शैली – आज हम अपने स्वार्थ के वशीभूत होकर पर्यावरण को बहुत क्षति पहुँचा रहे हैं। विवाह पार्टियों में प्लास्टिक से बनी हुई डिस्पोजल का प्रयोग करते हैं, घर में प्लास्टिक से बने हुए पन्नी-पॉलिथीन का प्रयोग करते हैं। वास्तव में इससे पर्यावरण को बहुत क्षति हो रही है। हमें इनके प्रयोग को वर्जित करना चाहिए।
4.स्व के प्रति जागरण – हमें स्व के उपयोग का ज्यादा से ज्यादा प्रयोग करना चाहिए। चाहे वह स्व देश हो चाहे वह स्व देशी वस्तु हो। यह भाव होना चाहिए कि मैं सर्वदा अपने देश में निर्मित ही वस्तुओं का प्रयोग करूँगा। मेरे देश का भोजन, मेरे देश की दवाई, मेरे देश की संस्कृति, मेरे देश के कपड़े, मेरे देश का पेय पदार्थ, मेरे देश का दंत मंजन, साबुन आदि का ही प्रयोग करूँगा इससे स्वदेशी सामान के प्रयोग करने की प्रेरणा मिलेगी और लोगों को रोजगार भी मिलेगा।
5.नागरिक कर्तव्य और नागरिक शिष्टाचार – हम सभी को जितना अपने अधिकारों के प्रति सजग रहना चाहिए उससे अधिक अपने कर्तव्यों के पालन के प्रतीक भी जागरूक रहना चाहिए। जब हम अपने कर्तव्यों का पालन करेंगे तो हम एक अच्छे नागरिक कहलाएँगे।
अच्छे शासन के पाँच उद्देश्य माने जाते हैं-
अच्छे शासन को देश की खुशहाली के लिए पाँच उद्देश्यों का पालन करना शासन की जिम्मेदारी होती है।
- अच्छा शासन- 2014 से पहले अच्छे शासन के रूप दिखाई नहीं दिए लेकिन 2014 के बाद देश भक्त की सरकार आई और उन्होंने देश के विकास के लिए बहुत सारे कार्य किये हैं। भारत की राष्ट्र प्रेमी सरकार के लिए प्रसिद्ध अखबार ‘संडे गार्जियन’ में लिखा था कि भारत में 800 साल बाद एक अच्छा शासन आया है। इस शासन में देश के चौमुखी विकास के लिए पूरा प्रयास हो रहा है।
वास्तव में अखबार की बात को देखा जाए तो यह तथ्य सही भी है। हमें भी ज्ञात है कि 2014 से पहले देश में हर जगह बम फूट रहे थे, अपहरण की घटनाएँ निरंतर हो रही थीं, आतंकवादी और उग्रवादी अपने जोरों पर थे लेकिन आज यह स्थिति नहीं है। पहले बसों में लिखा होता था ‘‘आपकी सीट के नीचे बम हो सकता है, कृपया जाँच कर बैठें’’ लेकिन इस तरह की सूचना अब दिखाई नहीं देती। 2014 के बाद नई सरकार आने से विदेश नीति में प्रभावी कदम उठाया गया है। सच्चाई में चीन भारत से भौतिक विकास के क्षेत्रों में बड़ा है लेकिन भारत ने उसका डटकर मुकाबला किया है। यह उदाहरण भारत ने गलवान में दिखाया है। चीन के सैनिक गुंडों ने बिना हथियार के भारत के सैनिकों के साथ अचानक अघोषित द्वंद्व युद्ध किया। जिसके परिणाम स्वरूप हमारेे 40 सैनिक शहीद हुए थे लेकिन भारत के मुकाबले में उनके 400 सैनिकों को मार दिया।
- विदेश नीति- 2014 के बाद भारत ने अपने देश की विदेश नीति में सुधार किया है। अब कोई भी विदेशी शासक भ्रमण के लिए आता है तो उसे गीता ग्रंथ भेंट किया जाता है, गंगा आरती में सम्मिलित कराया जाता है, हमारे मंदिरों के दर्शन कराए जाते हैं। इसका उद्देश्य है अपनी संस्कृति से उन्हें अवगत कराना और अपने भौतिक संसाधनों से परिचित कराना।
- देश का विकास- भारतीय संस्कृति से प्यार करने वाली सरकार के आ जाने से गत 10 वर्षों से भारत का निरंतर सांस्कृतिक और भौतिक विकास हो रहा है। युवाओं के लिए नए-नए रोजगार सृजित किए जा रहे हैं। देश के भौतिक विकास में जगह-जगह पुलों का निर्माण, रेल की लाइनों का बिछाना, सड़कों का निर्माण निरंतर हो रहा है। गरीब लोगों को घर बना कर दिए जा रहे हैं, गैस सिलेंडर दिए जा रहे हैं, अंत्योदय योजना के अंतर्गत अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति को लाभ देना जरूरी माना जा रहा है।
- विभिन्न योजनाओं का सूत्रपात- वर्तमान केंद्रीय सरकार ने ही जम्मू कश्मीर में नासूर बनी 370 धारा को समाप्त कर दिया है, तीन तलाक प्रथा को समाप्त कर दिया है। लगातार 80 करोड जरूरतमंद लोगों को राशन वितरित किया जा रहा है। शिक्षा के क्षेत्र में सुधार लाने के लिए ‘नई शिक्षा नीति 20’ को लागू किया है। स्वाधीनता का अमृत महोत्सव मनाया गया, देश में यवन आक्रांताओं के नाम पर बनी विभिन्न सड़कों के नाम को और नगरों के नाम में परिवर्तन किया गया है और हर घर तिरंगा का नारा दिया गया। ‘जी 20’ में सहभागिता करके विश्व में अपना परचम फहराया है। संसद में संकुल की स्थापना यानी धर्म दंड की स्थापना की है। विभिन्न क्षेत्रों के प्रतिभावान लोगों को सम्मान दिया गया है। 22 जनवरी 2024 में अयोध्या में राम मंदिर की स्थापना तो हर भारतीय के हृदय को जीतने वाला कार्य है।
- सुशासन- सरकार अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए सबके साथ समान व्यवहार का बीड़ा उठाया जा रहा है इसीलिए वर्तमान शासक ने सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास नारा दिया है।
नागरिकों के कर्तव्य
हमारे भारतीय संविधान में जहाँ हमें एक ओर मूल अधिकार दिए हैं वहीं हमें कर्तव्य का बोध कराने के लिए भी प्रेरित किया गया है। उस कर्तव्य की पूर्ति तब तब तक पूरी नहीं हो सकती जब तक हम सही सरकार के चुनाव में वोट प्रक्रिया का पालन करते हुए वोट देने के लिए सम्मिलित नहीं होते।
केवल वोट ही नहीं देना अपितु स्वयं को प्रतिबद्ध करके अपने परिवार को सचेत करते हुए समाज में जन जागरण करना और राष्ट्र की भलाई हेतु कार्य करने वाले दल को अपना मत देना।
विश्व का एक उदाहरण है कि किसी भी शासक ने प्रजातंत्रात्मक रूप में दो बार के बाद तीन बार चुनाव जीतकर शासन नहीं किया। जिन्होंने अन्याय व धोखे से किसी तरह जोड़-तोड़ कर शासन किया है तो उसने प्रजा के साथ क्या रूप दिखाया है, ये सभी ने देखा है।
वर्तमान शासक ने प्रजातंत्र में हर तरह से विश्वास किया है। प्रजातांत्रिक रूप से दो बार जीतकर अपने शासनकाल में उन्होंने देश में ही नहीं विदेशों में भी अपनी छाप छोड़ने से पूर्व छोड़ी है। उन्होंने हमेशा ही अपने भाषण में कहा है कि यह तो केवल एक ट्रेलर है मुख्य फिल्म तो बाद में सामने आने वाली है। यानी देश के विकास में अधिक काम होने वाला है।
हमें अपने देश के प्रति अपने भावों को सकारात्मक करते हुए
यद्यपि मोदी जी के व्यवहार से, उनके समर्पण से हम सभी परिचित हैं। फिर भी उनके कार्यों को हमें स्मरण करना चाहिए। यह कार्य उस तरह ही जरूरी है जिस तरह एक परीक्षार्थी पूरे वर्ष पढ़ाई करने के बाद परीक्षा से पहले अपने विषय की पुनरावृत्ति करता है।
।।भारत माता की जय।।