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सवैया छंद (22 से 26 अक्षर वाले सम वर्णिक छंद)

              सवैया चार चरणों का समपद वर्णिक छंद है। वर्णिक वृत्तों में 22 से 26 अक्षर के चार चरण वाले जाति छंदों को सामूहिक रूप से हिंदी में सवैया कहा जाता है। सवैये के मुख्य 14 प्रकार हैंः- 1 मदिरा, 2.मत्तगयंद, 3. सुमुखी, 4. दुर्मिल, 5. किरीट, 6. गंगोदक, 7. मुक्तहरा, 8. वाम, 9. अरसात, 10. सुंदरी, 11. अरविंद, 12. मानिनी, 13. महाभुजंगप्रयात, 14. सुखी

(1) मदिरा सवैया (22 समवर्ण वृत्त, वर्णिक छंद)

   मदिरा सवैया के चारों चरणों में 10 तथा 12वें वर्ण पर यति  कुल 22 वर्ण। चरणांत में गुरु होता है। इसमें चारों चरण सम तुकांत होते हैं। 7 भगण तथा अंत में एक गुरु वर्ण होता है।

  यानी 211 211 211 2, -11 211 211 211$2 जैसे-

प्यार दियौ उपहार दियौ, अरु नैनन सौं अति मान दियौ।
ईश कृपा सुख गात्र दियौ, विपदा महि जीवन दान दियौ।
जीवन के सब पाप छिपे,  तब क्यों मन में अभिमान दियौ।
मैं अब आज यही कहता, प्रभु ने ही नित जग ज्ञान दियौ।।

(2) मत्तगयंद सवैया (23 समवर्ण वृत्त, वर्णिक छंद)-

     मत्तगयंद सवैया 23 वर्णों का सम वर्ण छंद है, इस छंद में चार पद होते हैं और सभी सम तुकांत होते हैं। 12 एवं 11 पर यति होती है। जिसमें सात भगण और दो गुरुओं का योग होता है।

अर्थात- 211 211 211 211, – 211 211 211 $ 2, 2

   गोस्वामी तुलसीदास, केशव, भूषण, घनानंद, मतिराम, नरोत्तमदास आदि ने इस छंद का प्रयोग प्रचुर मात्रा में किया है। उदाहरण-

जागति है नहिं सोबति है अरु, रोबति रोज दुखी अति हो के,

खाबति है नहिं पीबति है नित, खोबति शांति तभी अति सो के।

बैनन सैंनन क्रोध करे हिय, चैन रह्यो नहिं जीवन खो के,

प्यार बिना ‘अनमोल’ यहाँ पर, लागत है नहिं भोजन नीके।।

 

(3) सुमुखी सवैया (23 समवर्ण वृत्त, वर्णिक छंद)

    सुमुखि सवैया 23 वर्णों का सम वर्ण छंद है। इसमें 11, 12 वर्णों पर यति होती है। मदिरा सवैया के आदि में लघु वर्ण जोड़ने से यह छंद बनता है। इसमें सात जगण, लघु+गुरु होते हैं।

यानी 121 121 121 12, -1 121 121 121+1, 2

मिली जननी तुमको जब से, नित पैर पखार दुलार करें,

सुशांत रहें जग में नित ही, उनसे कबहूँ न अरार करें।

सुनो जग की कर लो मन की, अपने मन माहिं सुधार करें,

रहे सुख जीवन प्रेम अहो, सब द्वेष बिडार करार करें।।

(4) अरविंद सवैया (25 समवर्ण वृत्त, वर्णिक छंद)

   अरविंद सवैया 25 वर्णों का समवर्ण छंद है। 12, 13 वर्णों पर यति होती है और चारों चरणों में ललितान्त्यानुप्रास होता है। यह आठ सगण और 1 लघु के योग से बनता है।

मापनी- 112 112 112 112, -112 112 112 112+1 जैसे-

सुख के क्षण को भरपूर करो, दुख के गम पे अब क्रूर प्रहार,

अपने तन पे, मन पे, धन पे, सुख के अनुरूप करो अधिकार।

कर दो नित भोजन की सुविधा, मत ही उनके मुख हाथ पसार,

वह काम नहीं करता कुछ भी, जिसको जग ही कहता व्यभिचार।।

(5) किरीट सवैया (24 समवर्ण वृत्त, वर्णिक छंद)

  किरीट सवैया 24 वर्णों का समवर्ण छंद है। इसके चारों चरण समतुकांत होते हैं। 12-12 वर्ण पर यति होती है। इसमें 8 भगण यानी- 211 211 211 211, – 211 211 211 211

हे जग स्वामि तुम्हीं पर मोहित, देखि हँसू शुभ मूरति धावत,

हो जग के तुम पालक-चालक, आप मिले सबके घर जावत।

मात-पिता वसु-देवक ध्यावत, लोग रटें नित सोवत जागत,

आप रहें सबके मन में घुस, रोवत खोवत गीतन गावत।।

(6) गंगोदक सवैया (24 समवर्ण वृत्त, वर्णिक छंद)

    गंगोदक सवैया 24 वर्णों का समवर्ण छंद है। 12-12 वर्ण पर यति। इसके चारों चरण समतुकांत होते हैं। मापनी 8 बार रगण यानी-212 212 212 212, – 212 212 212 212

मान में गान में प्रेम में दान में, रीत में जीत में वेश में केश हूँ,

प्यार में चार में धार में भार में, खेत में रेत में चेत में शेष हूँ।

आज का राज का साज का काज का, भूप का कूप का रूप का भेष हूँ,

ज्ञान का मान का दान का गान का, योग का भोग का जोग का देश हूँ।।

(7) मुक्तहरा सवैया (24 समवर्ण वृत्त, वर्णिक छंद)

  मुक्तहरा सवैया 24 वर्णों का समवर्ण छंद है। इसके चारों चरण समतुकांत होते हैं। मत्तगयंद सवैया के आदि और अंत में एक-एक लघुवर्ण जोड़ने से यह छंद बनता है। इसमें 11, 13 वर्णों पर यति होती है। मापनी 8 बार जगण

यानी-121 121 121 12, – 1 121 121 121 121 जैसे-

अधीर जने नित धीर धरें, गुण रूप सने मुख बात गणेश,

समीर बहे नित शोक दहे, सब रोगन के हित योग दिनेश।

अशोक जने सब शोक हरें, अवधेश विशेषन हेतु सुरेश,

मुस्कान धरे कुछ ध्यान भरे, कुछ दान करे बन मान महेश।।

(8) वाम सवैया (24 समवर्ण वृत्त, वर्णिक छंद)

   वाम सवैया 24 वर्णों का समवर्ण छंद है। 13-11 वर्ण में यति। मत्तगयंद सवैया के आदि में लघु वर्ण जोड़ने से यह छंद बन जाता है। यह सात जगण और एक यगण के योग से बनता है।

यानी- 121 121 121 121 1, – 21 121 121 + 122 जैसे-

न नैनन नैनन मोद भरे अति, बैन कह्यो नहिं आपुन ही के,

न घात करे नहिं बात करे नित, दूर करै रुचि भोजन नीके।।

न जाबति है नहिं आबति है अरु, खोबति प्रेम भरे अति जी के,

न मोदक को मन से अति देखति, लागत हैं फल खाबत फीके।

(9) अरसात सवैया (24 समवर्ण वृत्त, वर्णिक छंद)

  अरसात सवैया 24 वर्णों का समवर्ण छंद है। इसके चार चरणों में 12-12वें वर्ण पर यति। यह सात भगणों और एक रगण के योग से बनता है। मापनी-211 211 211 211, -211 211 211+212

क्यों छुपती इस भूमि महा पर, जा घर टेरि लियो पग धाय कै,

जान गई मन की सब बातन, का करि लेत हि नैन लगाय कै।

ज्ञान भयो सब कौतुक देखत, जीवन सोच न आँख मिलाय कै।

बात हुई मन घात हुई अरु, बैरिन प्यार जताय बुलाय कै।।

(10) महाभुजंगप्रयात सवैया (24 समवर्ण वृत्त, वर्णिक छंद)

   महाभुजंगप्रयात सवैया 24 वर्णों का समवर्ण छंद है। यह भुजंगप्रयात छंद का दुगुना छंद होता है। इस छंद में 12-12 वर्णों पर यति होती है। इसमें आठ यगण यानी-122 122 122 122,- 122 122 122 122 होते हैं। जैसे-

कभी राम बोला कभी श्याम बोला, उन्हीं के बताये सभी ही चले हैं,

यहाँ काम कियो वहाँ नाम मिलो, उसी के सहारे सुखों में भले हैं।

सदा काम आता उसी का सहारा, उसी के दिखाये मिला है किनारा,

उसी की खुशी से बना मैं दुलारा, हुआ मैं इसी से मही का सितारा।।

(11) दुर्मिल/चंद्रकला सवैया (24 समवर्ण वृत्त, वर्णिक छंद)

   दुर्मिल सवैया 24 वर्णों का समवर्ण छंद है। इसके चारों चरण समतुकांत होते हैं। 12-12 वर्ण पर यति का विधान है। इसमें आठ सगण अर्थात 112 112 112 112, – 112 112 112 112 जैसे-

दुख के गम को अब दूर करो, सुख के क्षण को भरपूर करो,

जिसने उससे अब आश करी, मिलने सबको मजबूर करो।

भर दो नित जीवन की कमियाँ, सबके दुख को अब चूर करो।

यह सोच वही करता नित मैं, जग में दुख का क्षण दूर करो।

(12) सुखी सवैया (24 समवर्ण वृत्त, वर्णिक छंद)

    सुखी सवैया 24 वर्णों का समवर्ण छंद है। वास्तव में ये दुर्मिल सवैया का परिवर्तित रूप है। 12, 14 वर्णों पर यति होती है। इसमें आठ सगण लघु+लघु यानी 112 112 112 112, -112 112 112 112+1,1 होते हैं। जैसे-

महिमा कछु श्रेष्ठन साँच कही, जग में नित देखत दूषण आबत,

जस ज्ञान दियो अनमोलन कूँ, छल देख लियो नित दोष दिखाबत।

जिनकी पिछली नहिं साख भली, उनमें नित देखत दोष अपावन,

नित काम कियो हरि नाम लियो, सुख पूरित काम करे नित पावन।।

(13) सुख सवैया (24 समवर्ण वृत्त, वर्णिक छंद)

   सुखी सवैया में थोड़े से अंतर के साथ सुख सवैया भी बनता है। ये भी दुर्मिल सवैया का परिवर्तित रूप है। 12, 14 वर्णों पर यति होती है। सुख सवैया में 8 सगण, लघु+गुरु होते हैं।

यानी 112 112 112 112, – 112 112 112 112+1, 2 होते हैं। जैसे-

जितनी अपने तन की महिमा, उतनी सब ही धन की गरिमा धरें,

सपने बुनते नित ही मन में, फिर भी कबहूँ नहिं ये सुख में जुरैं।

कछु वे हिय की सबको कहते, फिर भी मन में मन के दुख को सहैं,

सुख की सबसे कहते बतियाँ, दुख के मनके मन में नित ही रहैं।।

(14) सुंदरी/माधवी सवैया (25 समवर्ण वृत्त, वर्णिक छंद)

   सुंदरी सवैया 25 वर्णों का समवर्ण छंद है। प्रायः 12-13वें वर्ण पर यति। अंत में गुरु 2 का प्रयोग होता है। इसमें आठ सगण- सलगा, सलगा, सलगा, सलगा, सलगा, सलगा, सलगा, सलगा।

मापनी-112 112 112 112, – 112 112 112 112 + 2

यह ज्ञान धरो मन में अपने, धन का नित लाभ यहाँ मिलना है,

नित काम करो निज जीवन में, बल का अभिमान सदा ढलना है।

मन का सपना बनता तब ही, नर काम करे अति ही हँसना है,

खुशबू भरनी यदि जीवन में, बिन सोच बिचार किये चलना है।।

                   °°°

1 Comment

  1. अरुण मिश्र
    5 दिसम्बर 2024 @ 10:17 पूर्वाह्न

    सवैया छंद बहुत ही विस्तार और उदाहरण से बताए गए हैं वास्तव में यह सभी नवोदित कवियों के लिए और कविता प्रेमियों के लिए बड़ी लाभदायक ज्ञान है मैं आचार्य अनमोल को नमन करती हूं और उन्हें बधाई

    अरुण मिश्र

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